"बंधन जन्मों का" भाग- 12
पिछला भाग:--
बहुत सोच विचार के बाद अब इस नतीजे
पर पहुँचा हूँ... अब तुझसे बात करना जरूरी
हो गया है... मैं नहीं जानता तेरा रियेक्शन क्या होगा...बाबू जी मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा...आप क्या कहना चाह रहे हैं.......
अब आगे:--
बेटा मुझे गलत मत समझना... जो मैं कहने जा
रहा हूँ... उस पर विचार जरुर करना.....
पहाण सी जिंदगी पड़ी है तेरी.... कैसे जियेगी....
कैसे बच्चों को सम्हालेगी....मेरी जिंदगी का
अब कोई भरोसा नहीं....तेरे भाई की भी शादी
हो जायेगी... वो अपनी गृहस्थी में रम जायेगा....
मैं सोचता हूँ... अच्छा सा लड़का देखकर तेरी
शादी कर दूं... अब बाप का फर्ज भी तो मुझे
ही निभाना है....
न बाबू जी ऐसा मत कहिए... मैं बच्चों के सहारे
अपनी जिंदगी निकाल लूंगी.... कहती हुयी...
सुबकने लगती है...उसकी आंखों से अश्रु धार
बहने लगती है... अपने कमरे की तरफ दौड़
जाती है... बेटा एक बार मेरी बात पर विचार
जरुर करना... बाबू जी एक लम्बी गहरी सांस
भरते हैं... कैसे समझाऊं इसको... इसका दुख
मुझसे देखा नहीं जाता......
आज रात विमला की आंखों में नींद नहीं.....
पुरानी यादें रह रह कर सामने आ रहीं.....
मैं कैसे उन यादों को भूल जाऊँ.....
कितना प्यार करते थे... उनकी यादों को दिल
में बसाए हूँ... मिट नहीं सकती कभी वो यादें...
कैसे हंसी खुशी के दिन थे... पर ज्यादा समय
मेरी खुशियां टिक नहीं पायीं.....
पर मैं अपना प्यार किसी को बांट नहीं सकती,
मैं बच्चों के सहारे अपना जीवन निकाल दूंगी...
सोच विचार करते कब आंख लग गयी....
पता ही नहीं चला.....
नींद उचटी सी.... तो लगा कोई जोर जोर से दरवाजा पीट रहा है.... इतनी रात गये कौन हो सकता है......
उठकर घड़ी देखी सो सुबह के चार बज गये थे...
लेकिन अभी अंधेरा ही था... पता नहीं कौन है...
क्या करुं बाबू जी को उठाऊँ... कौन हो सकता है!!
हिम्मत करके दरवाजे के पास जाती है....
कौन है बाहर...? कौन है बाहर...?
क्रमशः--
कहानीकार-रजनी कटारे
जबलपुर ( म.प्र.)